बासु भट्टाचार्य, कला फिल्मों के दर्शको के लिए ये कोई अपरिचित नाम नहीं है। इन्होने हिंदी फिल्म जगत को एक से एक बेहतरीन फिल्मे दी हैं। व्यावसायिक रूप से ये फिल्में कुछ खास कमाल न दिखा पाईं हों लेकिन इन फिल्मों ने सिनेमा जगत को कला फिल्मों के रूप में कुछ ऐसे बेहतरीन तोहफे दिए हैं जो अपने आपमें बेमिसाल हैं।
मानवीय संबंधों पर आधारित यूँ तो हजारों फिल्मे बनी हैं। हिंदी फिल्म जगत के पारखियों ने उन्हें पसंद भी किया है और अवार्डो से नवाजा भी है। फिर भी मेरे हिसाब से कुछ फिल्मे ऐसी हैं जो बहुत ही अनोखी और बेमिसाल थी लेकिन दर्शकों के निगाहों से वंचित रहीं। ये फ़िल्में सिनेमा के माप डंडों पर अच्छी कमाई का साधन तो नहीं बन पायीं और ना हीं उन्हें बहुत ज्यादा देखा गया वे एक निश्चित वर्ग तक ही सीमित रहीं और समय के साथ गुम हो गयीं। मानवीय रिश्तों को बहुत ही खूबसूरती से दर्शाती हुई १९७४ में बनी एक ऐसी ही फिल्म का नाम है -अविष्कार। राजेश खन्ना और शर्मीला टैगोर का बेमिसाल अभिनय, डायलॉग सिर्फ नाममात्र के लिए हैं लेकिन जो हैं वे छाप छोड़ जाते हैं। इस फिल्म की कहानी यूँ तो मात्र एक रात के इर्द-गिर्द घूमती है जहाँ एक पति पत्नी आपस में सामंजस्य का ताना-बना बुनते दिखाई हैं। फिल्म का नायक अमर और नायिका मानसी महानगरों में रहने वाला एक आम शादी-शुदा जोड़ा है जो परिस्तिथियों के चलते एक दूसरे को समझ न पाने के कटु अनुभव से गुज़रते हैं.। प्रेम विवाह और उसके बाद सपनो का वास्तविकता के धरातल पर आकर सच्चाई में बदलना उन्हें हालातों के एक ऐसे मोड़ पर लाकर खड़ा कर देता है जहाँ वे पास-पास हो कर भी एक दुसरे से दूर हो जाते हैं। लेकिन फिल्म के अंत में गलतफहमियां दूर होती हैं और प्रेम उन्हें फिर एक दुसरे के नज़दीक ले आता है।
फिल्म का संगीत अद्भुत है। पूरी फिल्म के बेकग्राउंड में जगजीत सिंह का गीत बाबुल मोरा सुनाई देता है।
गीत जैसे :हंसने की चाह ने कितना मुझे रुलाया है, नैना हैं प्यासे मेरे" आदि बेहद कर्णप्रिय एवं मन को छू जाते हैं।
भावनाओं से सजी इस फिल्म ने प्रेम का जो रूप प्रस्तुत किया है वह वास्तविक है और बेहद संवेदनशील है।
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